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हैदराबाद के निज़ाम और ऑपरेशन पोलो: भारतीय संघ में विलय की कहानी

हैदराबाद के निज़ाम और ऑपरेशन पोलो: भारतीय संघ में विलय की कहानी :- भारत को 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिली, लेकिन उस समय भारत के अंदर 500 से अधिक देशी रियासतें थीं जो अपनी स्वायत्तता का दावा कर रही थीं। इन रियासतों के भारत में विलय की प्रक्रिया आसान नहीं थी, और इनमें से कुछ रियासतों ने भारत के साथ जुड़ने का विरोध किया।

हैदराबाद, जो उस समय सबसे बड़ी और संपन्न रियासतों में से एक थी, का विलय एक जटिल और विवादास्पद प्रक्रिया रही। इस रियासत के निज़ाम, उस्मान अली ख़ान, भारत में शामिल होने के बजाय अपनी स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे। इस स्थिति का समाधान “ऑपरेशन पोलो” के माध्यम से किया गया, जो भारतीय सेना द्वारा हैदराबाद को भारतीय संघ में मिलाने के लिए किया गया सैन्य अभियान था।

हैदराबाद के निज़ाम और ऑपरेशन पोलो: भारतीय संघ में विलय की कहानी

हैदराबाद के निज़ाम और ऑपरेशन पोलो: भारतीय संघ में विलय की कहानी

इस लेख में हम हैदराबाद के निज़ाम की भूमिका, ऑपरेशन पोलो के कारण और परिणाम, और इसके बाद के प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

हैदराबाद रियासत का इतिहास और निज़ाम का शासन

हैदराबाद, दक्षिण भारत की सबसे बड़ी रियासत थी और इसका क्षेत्रफल लगभग 82,000 वर्ग मील था। हैदराबाद का शासक मुस्लिम निज़ाम थे, जबकि रियासत की लगभग 85% आबादी हिंदू थी। निज़ाम की रियासत सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से बेहद संपन्न थी। निज़ाम को उनकी संपत्ति और वैभव के लिए दुनिया भर में जाना जाता था। उस्मान अली ख़ान, जो हैदराबाद के सातवें और अंतिम निज़ाम थे, अपने समय के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक थे। उनके शासन के दौरान हैदराबाद को “स्वर्ण युग” के रूप में देखा गया क्योंकि यह सांस्कृतिक, शैक्षिक और वास्तुकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा था।

हालांकि, भारतीय स्वतंत्रता के समय, निज़ाम उस्मान अली ख़ान ने भारत में विलय से इनकार कर दिया और हैदराबाद को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में बनाए रखने का निर्णय लिया। उन्होंने यह सोचते हुए भारत में शामिल नहीं होने का फैसला किया कि उनकी रियासत आर्थिक रूप से स्वावलंबी और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, वे भारत और पाकिस्तान के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे।

हैदराबाद और भारत के बीच संघर्ष

हैदराबाद का भारत में विलय न करने का फैसला तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के लिए चिंता का कारण बन गया। पटेल का मानना था कि हैदराबाद का भारत में विलय महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय उपमहाद्वीप के भू-राजनीतिक एकीकरण के लिए आवश्यक था। अगर हैदराबाद स्वतंत्र रहता, तो यह भारत के भूभाग के बीच में स्थित एक विदेशी सत्ता होती, जिससे सुरक्षा और एकता की समस्या उत्पन्न हो सकती थी।

निज़ाम की सरकार और भारतीय सरकार के बीच बातचीत विफल हो गई क्योंकि निज़ाम ने अपनी स्वतंत्रता पर जोर दिया और भारतीय संघ में विलय से इनकार कर दिया। इस दौरान, निज़ाम की सेना, जिसे रज़ाकार कहा जाता था, हिंदू बहुसंख्यक आबादी के खिलाफ हिंसक कार्रवाई कर रही थी। रज़ाकारों का नेतृत्व कासिम रिज़वी कर रहे थे, जो एक कट्टरपंथी इस्लामी नेता थे और वे हैदराबाद को इस्लामी राज्य के रूप में बनाए रखना चाहते थे। इस स्थिति ने हैदराबाद में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा दिया और पूरे क्षेत्र में अस्थिरता का माहौल पैदा कर दिया।

ऑपरेशन पोलो: हैदराबाद का सैन्य विलय

जब बातचीत और राजनीतिक हल नहीं निकला, तो भारतीय सरकार ने सैन्य हस्तक्षेप का फैसला किया। 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने “ऑपरेशन पोलो” शुरू किया, जिसे हैदराबाद को भारत में मिलाने के लिए पांच दिवसीय सैन्य अभियान के रूप में जाना जाता है।

भारतीय सेना के चार डिवीजनों को इस अभियान के लिए तैनात किया गया। भारतीय सेना ने कई मोर्चों से हैदराबाद पर आक्रमण किया और रज़ाकारों और निज़ाम की सेना के खिलाफ लड़ाई शुरू की। हैदराबाद की सेना भारतीय सेना के मुकाबले कमजोर थी और तकनीकी रूप से पिछड़ी हुई थी, जिसके कारण वे ज्यादा समय तक मुकाबला नहीं कर सके।

17 सितंबर 1948 को, निज़ाम की सेना ने हार मान ली और निज़ाम ने भारतीय संघ के साथ विलय के लिए सहमति दे दी। इस अभियान के दौरान लगभग 137 भारतीय सैनिक शहीद हुए, जबकि 2000 से अधिक रज़ाकार और निज़ाम की सेना के सैनिक मारे गए।

ऑपरेशन पोलो के बाद के प्रभाव

हैदराबाद का भारत में सफलतापूर्वक विलय भारतीय संघ की एकता और अखंडता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। निज़ाम उस्मान अली ख़ान को राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया और उन्हें एक प्रतीकात्मक शासक के रूप में रहने दिया गया, हालांकि वास्तविक शक्ति अब भारतीय सरकार के पास थी। 1956 में, राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा हैदराबाद रियासत का विभाजन किया गया और इसे आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, और कर्नाटक के बीच बाँट दिया गया।

हैदराबाद में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा

ऑपरेशन पोलो के दौरान और बाद में, हैदराबाद में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा में वृद्धि हुई। रज़ाकारों द्वारा हिंदू बहुसंख्यक के खिलाफ की गई हिंसा के जवाब में, भारतीय सेना द्वारा की गई कार्रवाई के दौरान कई मुसलमानों को भी नुकसान हुआ। हैदराबाद में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, और इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भी ध्यान दिया। हालांकि, भारतीय सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने और राज्य में शांति बहाल करने के लिए तुरंत कदम उठाए।

हैदराबाद के निज़ाम और ऑपरेशन पोलो पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

ऑपरेशन पोलो पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिक्रियाएं आईं। पाकिस्तान, जो उस समय हैदराबाद के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश कर रहा था, ने इस कार्रवाई की आलोचना की। पाकिस्तान ने यह मामला संयुक्त राष्ट्र में भी उठाया, लेकिन इस मुद्दे पर कोई ठोस अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया नहीं आई। भारतीय सरकार ने इसे आंतरिक मामला बताते हुए तर्क दिया कि हैदराबाद भारत के भू-भाग का हिस्सा था और उसकी सुरक्षा और एकता के लिए इसे भारत में शामिल करना आवश्यक था।

निज़ाम और हैदराबाद की जनता की प्रतिक्रिया

हालांकि निज़ाम ने प्रारंभ में भारत में विलय का विरोध किया, लेकिन ऑपरेशन पोलो के बाद उन्होंने भारतीय संघ के साथ सहयोग किया। उन्हें भारत के नए संविधान के तहत रियासत का शीर्षक और विशेष दर्जा दिया गया। हालांकि, जनता के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएँ थीं। हिंदू बहुसंख्यक आबादी ने भारतीय सेना के हस्तक्षेप का स्वागत किया क्योंकि इससे उन्हें रज़ाकारों के आतंक से राहत मिली। दूसरी ओर, कुछ मुस्लिम समुदायों में असंतोष था, लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ स्थिति सामान्य हो गई।

सरदार पटेल की भूमिका

हैदराबाद के भारत में विलय में सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी। पटेल ने भारतीय संघ की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए दृढ़ संकल्प दिखाया। उन्होंने हैदराबाद के मसले को भारत के अंदरूनी मामलों का हिस्सा मानते हुए सैन्य हस्तक्षेप का समर्थन किया। उनका यह कदम भारत के अन्य हिस्सों के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश था कि किसी भी प्रकार की असहमति या विद्रोह को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

निष्कर्ष

हैदराबाद के निज़ाम और ऑपरेशन पोलो की कहानी भारत के संघीय ढांचे की सफलता और एकता की मिसाल है। इस घटना ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय संघ में कोई भी रियासत स्वतंत्र नहीं रह सकती और सभी को देश के साथ एकजुट होकर रहना होगा। ऑपरेशन पोलो ने जहां हैदराबाद के भारत में विलय की प्रक्रिया को सुनिश्चित किया, वहीं इसने यह भी दिखाया कि देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं।

हैदराबाद अब भारत का एक अभिन्न हिस्सा है और इसने भारत के इतिहास, संस्कृति और राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऑपरेशन पोलो के माध्यम से भारत ने यह साबित किया कि स्वतंत्रता और एकता के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

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